नेहक रङ्ग - कविता Gajendra Gajur

Gajendra Gajur,ESANGOR
सामुहिक तस्विर हनुमाननगर,सप्तरी

तोहर हाथमे एक मुठ्ठी लाल गुलाल
दौड़ैत भागैत हम
बचाबैत रही अपनाकेँ
तोरा हाथेँ रङ्गाइ सँ
तोहर नम्गर डेग नहि रूकलौ
जा हम तोरा समर्पण नहि कदेलियै ... अपनाकेँ
हमर हारल मुहमे ,तोँ अपन जीतके रङ्ग लगबैत छलही
हम प्रेमक उत्सव मनबैमे मनग
जीत तोहर आ उत्सव हमर ,


तोहर नेहक गुलालमे
ओना त रङ्गाएल रही कहिया ने
नीकसँ मोनो नहि छै
गाम थान लग
पीपरक गाछ तर
गदुबुदाइत रही हमर कानमे
“हे आब होरी आइब गेलौ... तोँ बचैए क’ तआरी क’ ले
तोहर दात रङ्गाएले छौ अहू बेर
हमरा हाथेँ “
तोरा मोन त छौ ने,
हमर घरके पुआ,
माएके हाथे लगाएल अबीर,
डगर कात जोगीरा गाएब ,
तोहर फूचकारीसँ तोरे भिजेबाक
हमर शैतानी
आ हमर प्रेम !
एहन की हेतै जे रङ्गाएल नहि हेतै तोरासँ
इ त देखाबटी दिनके ,
एकटा नाम मात्र छियै

होरी !                                                               
   रचनाकार

गजेन्द्र गजुर
बर्दिवास,महाेत्तरी
सचिव,सङ्गाेर मिथिला नेपाल,


Post a Comment

0 Comments