जिन्दावाद मैथिली ! - विद्यानन्द वेदर्दी


eSangor
एकटा माए , बच्चा
रहब कण्ठसँ बजैत,कलमसँ लिखैत,
 पढै़त अएलहुँ जे हम, जनमैतसँ जिबैत               
माएक नोरमे आ माएक मुस्की पर,                       
शान छै,गुमान छै,अपन मैथिली पर,
सिखलहुँ जे चलैत माएक उङ्गरी पर,
बजैत अएलहुँ जे बाबूक घौड़की पर,
खेलैत पिलोडन्टा चाहे ओ गुली पर,

भेलै कि तीत केकरो माएकेर दुध राै !
जे कहतै भाइ,तोहर त भेलाै अशुद्ध,
चल चढ़ा क' ओकरा हम शूली पर
ठोकि देबै ठोरमे ताला,
जे हमर माएके गरियेतै
भोकि देबै कोढ़मे भाला,
जे हमर माएके लतियेतै

मान बचल हो बैमानके त',
सोझा आबिक' फरियेतै
हम सीताक सन्तान,गंगा जेहन साफ छी
हमही सङोर छी,हमही मिलाफ छी
डोम,यादव,बाभण आ कि मुसहर
मैथिल उपाधी भैया, सबसँ उपर

प्राणसँ प्रिय,सबसँ महान ई मैथिली
छी हमर त, सगर जहान ई मैथिली
होए आजाद मैथिल, रहे आवाद मैथिली
पहुँचाएब संसार सगरो शंखनाद मैथिली
जिन्दावाद मिथिला, जिन्दावाद मैथिली
 (२०७६/११/११)
esangor , Sangor Mithila Nepal
 रचनाकार
विद्यानन्द वेदर्दी
सचिव,मिथिला साहित्य कला प्रतिष्ठान नेपाल,राजविराज




वेदर्दी जीक लिखाबटमे जेना आगि लागल हाे  देहमे , समय अन्त अन्त पर हाेइ तखन जे हियासँ वेदना आ क्रान्ति बहराति छनि , ताहि तरहक प्रबल इच्छा शक्ति आ साहासिक यात्रा करबाक लेल अपना तयार भ' सभके आह्वान कएने छथि । मैथिली वा अपन मातृभाषामे  अभिव्यक्ती देबाक सशक्त  हस्ताक्षर छथि  वेदर्दी जी ।   (इ _सङ्गाेर ) 

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