~गजल~ तोड़ैछी हम गुलैर गाछिके आम समैझके...



तोड़ैछी हम गुलैर गाछिकेँ आम समैझके ।
खुदके समहारैछी पृयके नाम समैझके ॥

कत' मिलत अप्पन जाँहैत खेत खरिहान।
खाइछी फुटहा ओरहाकेँ बदाम समैझके॥

सिसे सिसासँ बनल इमारत तऽ बहुत अछि।
मूदा काटैछी दिन अप्पन गाम समैझके ॥

मोन होइए कि भागि आबितहुँ अप्पने देशमे।
डेग रुकि जाइए बाबुके माथहक घाम समैझके॥

हित प्रेम दोस महिम कियोने अछि सङ्गमे ।
तबो खुस छी मिथिलाक पावन धाम समैझके॥

रमन यादव "धिरु"
औरही-५ (सिरहा)

रमण यादव धीरू