गजल : पलपल भऽ रहल छी हम बर्बाद...


गजल,
अबै नहि चिठ्ठी, नहि कोनो समाद अहाँके यादमे !
पलपल भऽ रहल छी हम बर्बाद अहाँके यादमे !

सोह हमर तँ सबटा सोहने अहीँक नयनक नोह,
कि दिन कि राति, रहए नहि याद अहाँके यादमे !

प्रेमरस बिनु कोनाकऽ दागि रहल छी जीह हमर ?
कि मीठ्ठ कि तित,पाबी नहि सुआद अहाँके यादमे !

पाथर फेकैए लोक हमरा पर दूरसँ देखिते मातर,
कारण- स्वयंसँ करैत रहैछी संवाद अहाँके यादमे !

आबि धोखारि दिय मर्मक मरहमसँ मनमित अहाँ,
भरि-भरि देह भेलै जेँ दर्दक दाद अहाँके यादमे !

'राधा' ठहका मारिकऽ गबैत रहू मुस्कीक पराती,
'विद्यानन्द' गबैत रहत नोरक नाद अहाँके यादमे !

      @ गजलकार
✍विद्यानन्द वेदर्दी
   सचिव,मिलाफ नेपाल
सदस्य,सङ्गाेर मिथिला
 

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