गजल; चमकि उठल छी ...


गजल;
चमकि उठल छी लगा ललाओन सारी, प्रिये !
'दस्तन'* चलै हमरेपर नैनसँ छुर-कटारी, प्रिये !

एना सजि-धजि चढ़ल नै करू हमर छतपर
गामे गाम सुरु भऽ जाइए ईदक तैयारी, प्रिये !

हाथे राखी कजरौटी, काजर लगाबी हरदम
छिछोरा छै ई दुनियाँ, घूँघट नहि उघारी, प्रिये !

बिछेने छै उद्दाम हाथ, उसारत अहाँक मोन
निवेदन अछि एना नदानी जुनि पसारी, प्रिये !

भरोज रोपब, नेहछोंह पटाएब आ कमाएब
कि खड़ा करब पिरीत-कियारीक बारी, प्रिये !

एकहि हल्लापर हाजिर रहब, हएत नहि देरी
निजी ई 'अमन' अहाँक, छी नै सरकारी, प्रिये !

-  अशोक अमन
  -काठमाण्डौं,नेपाल
अशोक जी हाल दशमे अध्ययनरत छथि।
कम समयमे पाठक आ श्रोताकेँ मन मोहि
 लेबामे माहिर छथि।
*दस्तन ( उर्दू )-जानि-बूझिक'


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