गजल;देखु त आब ओ साँपोसँ बेसि धराह भ' गेलै

गजल - ४
ओकर चक्करमे  इ  छाैड़ा तबाह  भ' गेलै
पहिने केहेन छलै शांत आब कटाह भ' गेलै

एक दिन खूव हँसैत-गबैत छेलै असगरे
मुदा आइ  छौडाके देखू  मोनाह भ' गेलै

सब कहै, तू छी अनमन सुगा आ भोला
देखु त आब ओ साँपोसँ बेसि धराह भ' गेलै

छोड़िक' गेलै जहियासँ 'धनिया' ओकरा
तहियेसँ  सुनै  छियै  'रविया' बताह भ' गेलै

   प्रदिप नारायण यादव 
  नवटोली,लक्ष्मीपुर पतारि-३,सिराहा
  १२ कक्षामे अध्ययनरत,लहान
  सङ्गाेर मिथिलाक सदस्य

प्रदिप जी नव सृजक छथि । व्यङ्ग आ अपन अनूभवकेँ रचनामे
 राेचक ढङ्गसँ व्यक्त करब हिनक मूल विशेषता छनि ।
 मैथिली साहित्यक नब कान्हसभ जे तयार भ' रहल छै,
तहिमे एकटा सम्भावित कान्ह प्रदीप जी सेहाे छथि। (इ सङ्गाेर )