गजल-
केकरा-के देखैहै दुनियाँमे आन क्यो
आँखिकेँ-नोर आब पीय' परतै !
बहुते किछू लोग ल' केलियै-धेलियै,
बदला ऊ सभटा, आब लीय' परतै !
खुश रहऔ या नाराज से हमे नहि जानी
एक-एक क' बदला हमर, दीय' परतै !
हाल - दोहा क़तार
बिरेन्द्र जी ,मैथिली लेखनमे हाल युवासभहक मध्य प्रिय आ प्रखर लेखक छथि।
अपन माैलिक परिवेशमे रहिए क' विशिष्ट बात अपन रचनामे व्यक्त करब
हिनक मुल विशेषता छनि। तहिना मातृभाषामे रचना करबा सङ्गे मातृभाषा
विकासक लेल अनेक तरहक गतिविधीमे लगल रहैत छथि। (इ सङ्गाेर,)
अपने बल प' आब जीय' परतै !
बीहुसल करेजा ई सीय' परतै !
बीहुसल करेजा ई सीय' परतै !
केकरा-के देखैहै दुनियाँमे आन क्यो
आँखिकेँ-नोर आब पीय' परतै !
बहुते किछू लोग ल' केलियै-धेलियै,
बदला ऊ सभटा, आब लीय' परतै !
खुश रहऔ या नाराज से हमे नहि जानी
एक-एक क' बदला हमर, दीय' परतै !
गजलकार
बिरेन्द्र कुमार सिंह (कुशवाहा)हाल - दोहा क़तार
बिरेन्द्र जी ,मैथिली लेखनमे हाल युवासभहक मध्य प्रिय आ प्रखर लेखक छथि।
अपन माैलिक परिवेशमे रहिए क' विशिष्ट बात अपन रचनामे व्यक्त करब
हिनक मुल विशेषता छनि। तहिना मातृभाषामे रचना करबा सङ्गे मातृभाषा
विकासक लेल अनेक तरहक गतिविधीमे लगल रहैत छथि। (इ सङ्गाेर,)
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