कविता: मन अहाँ सन | राम साैगारथ यादव

।। मन अहाँ सन ।।

बिजली चमकैत काल
ठन्काक डरसँ
अहाँ अपन हाथ
हमरा माथपर जे राखिदेने छलीयै
से एकटा जवना छलै ।
धर्ती हिलैत छलै
लोक घरसँ बहराइत छलै
प्रकृतिक कतेको नियम बिगरि चुकल छलै
धर्तीपरकें समुचा जीव
असमन्झनमे परल काल
अहाँ अपना तरहथीपर हमरा ठाड क
पृथ्वी हिलबाक अनुभव सँ
दुर जे राखि देलीयै
से एकटा जवना छलै ।
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राम साैगारथ यादव



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