बहारक देवता आ घरमे भगवान नहि ।
घरमे डाईन कहाइ, बहारमें देवी
घरक मुखीयाके बुद्धि गियान नहि ।
घरक मुखीयाके बुद्धि गियान नहि ।
मायक बेटीके रूवा नहि टूटे
घरक पुतहुकें कोनो धियान नहि ।
घरक पुतहुकें कोनो धियान नहि ।
काज करैत बेर बलगर छै दइया
अधिकारक बेरमे तो सियान नहि ।
अधिकारक बेरमे तो सियान नहि ।
बेटीएसँ रीत चलैए छै सबदिन जगके ,
तइयाे बेटाके आगु बेटीके निशान नहि।
तइयाे बेटाके आगु बेटीके निशान नहि।
लेखिका परिचय
राधा कुमारी दास,
इ मैथिली साहित्यमे नवका नाम अछि।
सङ्गाेर मिथिला नेपाल,लहान कार्यसमितिक सदस्य थिकीही ।
हाल लहानमे पढि रहल अछि ।
इ हिनकर पहिल रचना छियनि।
२०७५ साल जेठ २५ गते लिखने छलीही।
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