गजल : सीताक अँगनामे | राधा कुमारी दास

सीताक अँगनामे सीतेके मान नहि।
बहारक देवता आ घरमे भगवान नहि ।     

घरमे डाईन कहाइ, बहारमें देवी
घरक मुखीयाके बुद्धि गियान नहि ।


मायक बेटीके रूवा नहि टूटे
घरक पुतहुकें कोनो धियान नहि ।

काज करैत बेर बलगर छै दइया
अधिकारक बेरमे तो सियान नहि ।

बेटीएसँ रीत चलैए छै सबदिन जगके ,
तइयाे बेटाके आगु बेटीके निशान नहि।

sangor mithila nepal,radh kumari das


लेखिका परिचय
  राधा  कुमारी दास,
इ मैथिली साहित्यमे नवका नाम अछि। 
सङ्गाेर मिथिला नेपाल,लहान कार्यसमितिक सदस्य थिकीही ।
हाल लहानमे पढि रहल अछि । 
इ हिनकर  पहिल रचना छियनि।
२०७५ साल जेठ २५ गते लिखने छलीही

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